“मिलने आयीं हूँ तुमसे ही तो”


ये सर्दियों की बारिश भी ना
कुछ कहती नहीं ...बस भिगो जाती है...
बातें इधर- उधर की  सुना जाती है।
मेरी सहेली बनकर....
थाम लेती है हाथ मेरा ...
और कहती है..
“मिलने आयीं हूँ तुमसे ही तो
आओ टहलने चलें....
बादलों के पहरे में...
अँधेरों की पगडंडी पर....
साथ-साथ ॥


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