चाँद की परिक्रमा और बादल को चाहने वाले का इंतज़ार..... सब प्यार है !


जैसे ही...
खिड़की खोल कर
देखना चाहा कि
सुबह कैसी है आज !
वो एक दम से-अचानक-सामने आ गया।
अजीब लगा मुझे...
अधूरा नहीं लगा,
पूरा लगा मुझे।
फिर लगा, कि इसका तो दिन रात चलना ज़रूरी है।
तभी तो, जब भी मौका मिलता है ये नज़र आता है।
एक चातक की भांति
एक भाव मात्र के लिए -
जिसे हम शायद विज्ञान कह देते हैं-
ये घूमता रहता है अपने इष्ट के चारों और,
करता रहता है
एक अनन्त- अदभूत परिक्रमा !
सच प्रतीत होता है मुझे...
चातक का निहारना बादल को
और
मेरा निहारना......
चाँद की परिक्रमा
और बादल को चाहने वाले का इंतज़ार.....
सब प्यार है !
.......तुम आओ तो सही, आज भी- तुम्हारा इंतज़ार है !

Comments

  1. finally, some thing was able to get the awaited Visitor! Thnku Guru Ji! Love!

    ReplyDelete
  2. उम्‍दा....खासकार अंतिम पंक्तियां बहुत पसंद आईं । वतर्नी की अशुद्धियों से बचो और लिखते रहो ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...