आज हमारा दिन है ना....
जैसे घर होता है ना
एकदम अलग
सबसे...
मगर फिर भी सब जैसा!
थक जाओ तो जहां पीठ सटाने के लिये
एक नहीं
चार-चार दीवारें होती हैं
एक छत भी होती है सर ढकने के लिये।
जहां सोचो भी तो आहट होती है
और समझ जाते हैं अपने !
जहां आँखें होती हैं अपनी-अपनी
पर सांझे होते हैं सपने।
मैं उस घर की बात कर रहा हूँ
जहां साथ
‘साथ’ ही कहलता है…
जहां तुम मेरे साथ होते हो।
मैंने तुम्हें देखा है वहीं
जहां की मैं बात कर रहा हूँ।
आज हमारा दिन है ना....
तभी तो
मैं सिर्फ़ तुम्हारी बात कर रहा हूँ
सिर्फ़ तुम्हारी !
और तो सब माध्यम मात्र हैं ।
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