तुम्हारी मेहंदी के रंग .....

Really UnAware of the effect and the feeling that came when this was composed, I slept thinking that still its incomplete and started thinking of a good LAST Line for this piece..when I opened the document in the morning to add something- I was surprised: It was complete with a nice feel of my wish. Don't know when this was typed!

The Muse sometimes works-and -You are not there to see this-!
Thanks Muse!


कुछ रंग छोड़ दिये थे तुमने
मेरी हथेली पर...
याद नहीं आ रहा कब!
मैंने देखा था तुम्हें
उस शाम
तुम आँगन में बैठी  
अपनी हथेली पर
रंग सजा रही थी !
मुझे उस रोज़ भी ये अच्छे लगे थे
तुम्हारी तरह !
आज जब भी देखता हूँ 
अपनी खुली हथेली को
तो
तुम्हें पाता हूँ- अपने भीतर!
जबकि जानता भी हूँ कि
रंग किसी के अपने थोड़े ही होते हैं!
आज यहाँ तो कल फिर वहाँ!
पर क्या करूँ?
हथेलियाँ कहाँ मानती हैं मेरी कही बात!
तुम थामो अगर मुझे
सहलाओ मेरी लकीरों के इस घर को
तो ही
मैं बोल पाऊँगा तुमसे।
सच में-
तुम्हारी मेहंदी के रंग बड़े पक्के होते हैं!

Comments

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...