एक बात बता चौराहे !


एक बात बता चौराहे !
किस तरफ़ जाऊँ ?

उस तरफ़ - जिस ओर - रास्ता जाता है?
या उस ओर-जिस-ओर मंज़िल है?
या देखूँ उधर जहां भीड़ है?
हाँ, अपने सामने की ओर भी चल सकता हूँ !
मेरे लिए चलना ज़्यादा ज़रूरी है!
और तुम ऐसे हो कि
चुनाव की दुविधा में उलझा देते हो सबको।

कोई तुमसे मिलने भी आता है तो
तुम तक पहुँच कर भी
तुम्हें छु नहीं पाता।
इतना क्या गुमान भला अपने होने का ?

मेरी बात मानो- समझो....
तुम्हारा होना राहगीरों के जाने से नहीं......
उनके लौट कर आने से है !


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