तुमने पलकें भिगोई थी अपनी तो गल गया था चाँद!

तुम बोलती गयीं
चाँद बढ़ता गया
एक-एक कला...
तुम्हारे एक-एक शब्द के साथ!
तुम्हारी एक-एक  मुस्कान के साथ
उसकी चाँदनी बढ़ती गयी !!!
तुम चुप हुईं जैसे ही…..
सहम गया वो !!!
घटने लगा
एक-एक कला!
बीच-बीच में तुम बोलने को होती
तो ठहरने लगता...
पर
तुम जब कुछ ना बोलती - तो
चल पड़ता ये खेल फिर से  !
तुमने पलकें भिगोई थी अपनी तो
गल गया था चाँद!
बूँद-बूँद बह गया
पानी बनकर !

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