मेरी आँखों की कलाएं न देख पाये तुम...


चाँद की कई कलाएं होती हैं
एक ज़ुबान होती है आंखों की
मैंने जब सोचा कि
दिल कि बात उड़ेल कर
ये गठरी उतार दूँ...
कुछ ही शब्द
थोड़े से शब्द
अपने शब्द
मैंने ढूंढ ही लिए
मगर
मेरे लफ़्ज़ों का साथ नहीं दिया आँखों ने
रास्ता देने वाला ही जब रास्ता बंद कर ले
जब चाँद और आँखों को अलग कर दिया जाये
कुछ तो फर्क पड़ता होगा....
चाँद कि ज़ुबान तो तूने समझी दोस्त....मेरी आँखों की कलाएं न देख पाये तुम...

मैं तबसे
खाली ज़मीन पर अकेला हूँ.....
June 28, 2007 

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