हमारी कविता........


लो, एक नई कविता लिखता हूँ
एक नया तराना
एक नया गीत
कुछ नये भाव
कुछ पुराने किस्से
एक नयी बात
जिसमें किरदार नहीं हैं हम-तुम।
जहां नहीं हैं बंधन
इस जहाँ के,
जहां अंधेरे नहीं हैं
उजाले भी नहीं
कागज़ नहीं है कोई
और
किसी स्याही का भी पता नहीं !
तुम सोचोगे
ये कैसा गीत है...
जिसमें हैं कुछ नहीं !
मगर मैं कहता हूँ सब कुछ है।
आओ तो...
देखो ज़रा इसमें क्या है...?
इसमें हमारे सपने हैं
इसमें तिनका-तिनका जोड़ा हुआ
हमारा घरोंदा है
उम्मीदें हैं-आस है इसमें ।
जो कुछ भी है
हमारे पास है इसमें।
स्पर्श है कहीं
तो कहीं मुस्कुराहट है...
बाहर की नहीं भीतर की चाहत है ।
इसमें तस्वीर है कोई
एक नाम भी है !
इसमें वो कोहनियों का टकराना है
वो आज़ाद खामोशी है, जो अपनी है।
और क्या चाहोगे भला ?
इस कविता का एक नाम भी है....
हम”!
ये
हमारी कविता है !
जो नश्वर है...मुक्त है !!!
December 13, 2011

Comments

Popular posts from this blog

Taar nukiley hotey hain

घूर के देखता हैं चाँद

किसी को दिखता नहीं, इसका मतलब ये तो नहीं कि मैं हूँ ही नहीं!