एक पाएदान से दूसरे तक....... फिर उससे भी आगे...
पाएदान एक एक करके
कैसे हम बढ़ते जाते हैं
उस समझ की ओर
जो हममें थी नहीं
जब हमने चलना शुरू किया था...
अगर बात
सफ़र में हाथ थामने की ही सोची थी
जब साथ चले थे तुम मेरे...
तो
साथ ही तो चलना है..
एक पाएदान से दूसरे तक
और फिर उससे भी आगे !
हमारे-तुम्हारे साथ होने का परिचायक है
हमारा- तुम्हारा आगे बढ़ते रहना
साथ –साथ।
एक पाएदान से दूसरे तक.......
फिर उससे भी आगे ॥
Comments
Post a Comment