क्या पता..... अबके सावन में फिर हरा हो जाऊँ मैं....


तू मेरा सरमाया बने और तेरा हो जाऊँ मैं
आसमा बन जा मेरे लिए- धरा हो जाऊँ मैं॥
अपने प्यार को जहां भर मे फैलाएँ हम
तुम महक बन जाओ- और हवा हो जाऊँ मैं॥
भटके हुओं को अंधेरों से ऊबारें-चलो हमसफर
तुम दीप बन जाओ और रास्ता हो जाऊँ मैं॥
मेरा वजूद तो लफ़्ज़ बनकर भी सँवर जाएगा
अपने होठों पे रखो तुम तो दुआ हो जाऊँ मैं॥
पेड़ हूँ...... मेरी सूखी शाखों को न तोड़े कोई......
क्या पता..... अबके सावन में फिर हरा हो जाऊँ मैं ॥

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