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Showing posts from January, 2012

“फिर मिलेंगे”

मैं निकलूँ तेरे साथ ही घर से और चलूँ उस मोड़ तक जहां तुम मुड़ते हो मेरी ओर, मुझे छूकर... देखकर... मुस्कुराते हुये “फिर मिलेंगे”   कहते हो ! दिन ढलने तक मैं दो जगह रहता हूँ... एक तो - तुम्हारे बिल्कुल साथ... सच कहूँ तो पास। और दूसरी जगह यही मोड़ है.... वापस लौटकर.... जहां पहुँचते ही... मुझे ख़ुद से मिला देते हो तुम।। 

तुम्हारी मेहंदी के रंग .....

Really UnAware of the effect and the feeling that came when this was composed, I slept thinking that still its incomplete and started thinking of a good LAST Line for this piece..when I opened the document in the morning to add something- I was surprised: It was complete with a nice feel of my wish. Don't know when this was typed! The Muse sometimes works-and -You are not there to see this-! Thanks Muse! कुछ रंग छोड़ दिये थे तुमने मेरी हथेली पर... याद नहीं आ रहा कब! मैंने देखा था तुम्हें उस शाम … तुम आँगन में बैठी   अपनी हथेली पर रंग सजा रही थी ! मुझे उस रोज़ भी ये अच्छे लगे थे … तुम्हारी तरह ! आज जब भी देखता हूँ  अपनी खुली हथेली को तो तुम्हें पाता हूँ- अपने भीतर! जबकि जानता भी हूँ कि रंग किसी के अपने थोड़े ही होते हैं ! आज यहाँ तो कल फिर वहाँ! पर क्या करूँ ? हथेलियाँ कहाँ मानती हैं मेरी कही बात ! तुम थामो अगर मुझे सहलाओ मेरी लकीरों के इस घर को तो ही मैं बोल पाऊँगा तुमसे। सच में- तुम्हारी मेहंदी के रंग बड़े पक्के होते हैं!

एक बात बता चौराहे !

एक बात बता चौराहे ! किस तरफ़ जाऊँ ? उस तरफ़ - जिस ओर - रास्ता जाता है ? या उस ओर-जिस-ओर मंज़िल है ? या देखूँ उधर जहां भीड़ है ? हाँ , अपने सामने की ओर भी चल सकता हूँ ! मेरे लिए चलना ज़्यादा ज़रूरी है! और तुम ऐसे हो कि चुनाव की दुविधा में उलझा देते हो सबको। कोई तुमसे मिलने भी आता है तो तुम तक पहुँच कर भी तुम्हें छु नहीं पाता। इतना क्या गुमान भला अपने होने का ? मेरी बात मानो- समझो.... तुम्हारा होना राहगीरों के जाने से नहीं...... उनके लौट कर आने से है !

तुम्हारा सफ़ेद सूती दुपट्टा...

वो तुम्हारा सफ़ेद सूती दुपट्टा... जब भी मेरी हथेली पे पड़ता है , तो महसूस होता है जैसे , दूधिया आसमान.... सिमट जाता है.... मेरी लकीरों मे.. और कहीं से आ जाती है ख़ुशबू गुलाबों की॥ ठंडक चाँदनी की और मुस्कुराहट॥ और मुस्कुराहट तुम्हारी। कह नहीं पता हूँ कुछ... बस कह देता हूँ कि बहुत सुंदर है दुपट्टा  ! कितना मुश्किल है ना ? तुम्हारी तारीफ़ करना। तुमसे ये कहना कि अच्छे लग रहे हो ,,, सुंदर लग रहा है..... ये मुस्कुराता  हुआ दुपट्टा... देखो ना... कितना चालाक हूँ मैं... कह भी देता हूँ और कहता भी नहीं...!!!

आज हमारा दिन है ना....

जैसे घर होता है ना एकदम अलग सबसे... मगर फिर भी सब जैसा! थक जाओ तो जहां पीठ सटाने के लिये एक नहीं चार-चार दीवारें होती हैं एक छत भी होती है सर ढकने के लिये। जहां सोचो भी तो आहट होती है और समझ जाते हैं अपने ! जहां आँखें होती हैं अपनी-अपनी पर सांझे होते हैं सपने। मैं उस घर की बात कर रहा हूँ जहां साथ ‘ साथ ’ ही कहलता है … जहां तुम मेरे साथ होते हो। मैंने तुम्हें देखा है वहीं जहां की मैं बात कर रहा हूँ। आज हमारा दिन है ना.... तभी तो मैं सिर्फ़ तुम्हारी बात कर रहा हूँ सिर्फ़ तुम्हारी ! और तो सब माध्यम मात्र हैं । 

तुमने पलकें भिगोई थी अपनी तो गल गया था चाँद!

तुम बोलती गयीं चाँद बढ़ता गया एक-एक कला... तुम्हारे एक-एक शब्द के साथ! तुम्हारी एक-एक  मुस्कान के साथ उसकी चाँदनी बढ़ती गयी !!! तुम चुप हुईं जैसे ही ….. सहम गया वो !!! घटने लगा एक-एक कला! बीच-बीच  में  तुम बोलने को होती तो ठहरने लगता... पर तुम जब कुछ ना बोलती - तो चल पड़ता ये खेल फिर से   ! तुमने पलकें भिगोई थी अपनी तो गल गया था चाँद! बूँद-बूँद बह गया पानी बनकर !

चाँद की परिक्रमा और बादल को चाहने वाले का इंतज़ार..... सब प्यार है !

जैसे ही... खिड़की खोल कर देखना चाहा कि सुबह कैसी है आज ! वो एक दम से-अचानक-सामने आ गया। अजीब लगा मुझे... अधूरा नहीं लगा , पूरा लगा मुझे। फिर लगा , कि इसका तो दिन रात चलना ज़रूरी है। तभी तो , जब भी मौका मिलता है ये नज़र आता है। एक चातक की भांति एक भाव मात्र के लिए - जिसे हम शायद विज्ञान कह देते हैं- ये घूमता रहता है अपने इष्ट के चारों और , करता रहता है एक अनन्त- अदभूत परिक्रमा ! सच प्रतीत होता है मुझे... चातक का निहारना बादल को और मेरा निहारना...... चाँद की परिक्रमा और बादल को चाहने वाले का इंतज़ार..... सब प्यार है ! .......तुम आओ तो सही , आज भी- तुम्हारा इंतज़ार है !

वो जो सुर्ख़ टुकड़ा तुम छोड़ देती थीं.... आईने पे लगा कर....

Thanks to My Muse.......  Reading it is like a dream coming true....!  Laado....  The 'touchiest'  most loved  one ! वो जो सुर्ख़ टुकड़ा तुम छोड़ देती थीं आईने पे लगा कर.... अब , मैं जब भी ख़ुद को देखने जाता हूँ.... तुम्हें देखकर लौट आता हूँ... अदभूत है वो रंग ! वो छोटा सा चाँद जो तुम्हारे माथे से उतर कर आ बैठता है आईने पर ! सच तुम आस पास ना भी हो तो भी ये सुर्ख़ टुकड़ा तुम्हें मेरे पास ला देता है ! मैं बातें करने लगता हूँ तुमसे..... निहारता रहता हूँ... तुम्हें ॥ 

अब इन्हें छूकर नहीं जलेंगी मेरी उँगलियाँ...

पानी में भीगा था जब वो  काग़ज़  का टुकड़ा... सब रंग एक हो गए थे जैसे स्याही ने समझोता कर लिया हो कलम से नहीं.... काग़ज़ से भी नहीं..... बल्कि... उन रंगो से- जो छुपे हुए थे अरसे से उस काग़ज़ में जो अभी-अभी भीगा था बारिश में। शब्द ऐसे बह रहे थे जैसे मोतियों की माला से मोती बहते हैं ! एक के बाद एक !!! मैं किस - किस को थामने जाऊँ !?! भय आता है कभी-कभी तो... याद दिलाता है वो बारिश जब इसी तरह भागे थे रिश्ते मुझसे....! ............. आज तुम हो तो तसल्ली है।  मैं चुन सकता हूँ ये बिखरे हुए  काग़ज़  के टुकड़े... और अब...  इन्हें छूकर नहीं जलेंगी मेरी उँगलियाँ... । 

“मिलने आयीं हूँ तुमसे ही तो”

ये सर्दियों की बारिश भी ना कुछ कहती नहीं ...बस भिगो जाती है... बातें इधर- उधर की  सुना जाती है। मेरी सहेली बनकर.... थाम लेती है हाथ मेरा ... और कहती है.. “मिलने आयीं हूँ तुमसे ही तो ” आओ टहलने चलें.... बादलों के पहरे में... अँधेरों की पगडंडी पर.... साथ-साथ ॥

उलझी हुई कुछ बातें.....

तू बरस .... ! कर , जो तेरे मन में आता है मैं नहीं बोलूँगा कुछ तुझे  कहूँ भी- तो अनसुना कर देना , दिखावे के लिए कहना भी पड़ेगा मुझे ! ये तो बता... ऊबता नहीं है क्या तू...? उलझा के रखता है सबको ! तेरा पता भी नहीं है किसी के पास और जिनके पास है... वो तूने ख़ानाबदोश कर रखें हैं ! तू है के नहीं.....!? वहम तो नहीं है ना तू...? देख... वहम मत बनना... अपना होना साबित करने की ख़ातिर मुझे पहले तेरा होना दिखाना है ! जा बरस ले... देर हो रही होगी तुझे ! फिर घर भी तो जाना है ना ! ? !
तू मिले अगर तो तेरा गिरेबान पकड़ के पूछूं...... बता ! क्या ग़लत किया- जब किया ही कुछ नहीं 

बहुत कुछ है हुमारे तुम्हारे बीच....

बहुत कुछ है हमारे तुम्हारे बीच ! कही अनकही कितनी बातें हैं... कितने अधूरे सफर हैं  और कितनी काली रातें है बहुत कुछ है.... हमारे तुम्हारे बीच.. एक लंबा इंतज़ार है...   एक साथ है तुम्हारा...  तेरे होने का एहसास है ॥ हमारे तुम्हारे बीच... सारा जग है अब...

सब तुम्हे कहने का मन होता है... बस तुम्हे कहने का...!!!

एक सीरे से दूसरे सीरे तक हर तरफ देख कर सोच चुका हूँ ! मन की बात हालात खुशी ख़ामोशी सब तुम्हे कहने का मन होता है... तुम्हे ही छूकर अपने होने की तसल्ली होती है मुझे... मेरे अंधेरे कमरे में तुम बंद दरवाज़ों से आने वाली उस रोशनी की   तरह हो प्रिये जिसके सहारे मैं ढूँढ सकता हूँ दर-ओ-दीवार अपने. तुम हो क्या क्या-क्या मेरे लिए पता नहीं.. बस इतना पता है कि... मन की बात हालात ख़ुशी ख़ामोशी सब तुम्हे कहने का मन होता है... बस तुम्हे कहने का...!!!