“फिर मिलेंगे”
मैं निकलूँ तेरे साथ ही घर से और चलूँ उस मोड़ तक जहां तुम मुड़ते हो मेरी ओर, मुझे छूकर... देखकर... मुस्कुराते हुये “फिर मिलेंगे” कहते हो ! दिन ढलने तक मैं दो जगह रहता हूँ... एक तो - तुम्हारे बिल्कुल साथ... सच कहूँ तो पास। और दूसरी जगह यही मोड़ है.... वापस लौटकर.... जहां पहुँचते ही... मुझे ख़ुद से मिला देते हो तुम।।