सड़क खोखली है नीचे से
सुखी नदी के ऊपर भला ये कैसा पुल है, यूँ लगता है के सड़क खोखली है नीचे से... घर की पूजा से नाकारा हुए फूल-पत्ते-छिलके धूं-धूं कर जली राख-कुछ कागज़-कोई टूटी मूर्ति पुरानी तस्वीर-लाल चु...
मैं जब बात करूं कोने की तो बात अपनी सी लगती है दो दीवारें मिलती हैं दो किरदार भागे जाते हैं कोने की ओर कुछ अपनी बातें भी तो कोने में ही हो पाती हैं. कोने में रहना संतुष्टि देता है सबल करता है प्रबल बनता है और शायद प्रवीण भी! कोने का केबिन कोई खोज नहीं है यह सब पाया हुआ है संजोया हुआ है बांटने आया हूँ बस! दफ़्तर में केबिन कोने में ही है.... अपनापन अपनेपन से हो ही जाता है!