किसे नहीं भाएगा भला...

किसे नहीं भाएगा भला...
अपनी महीन रेशमी मुठ्ठी में
जब जकड़ ले मेरी एक अंगुली को...
और टिम-टिम करती आँखों से निहारे वो
अपने पैरों को हवा में उड़ा मस्त दिखे
और बुलबुले उड़ाये होठों से...
बिल्कुल वैसे जैसे आपको भाते हैं।
जब कुरेदे अपने रेशम से भी नरम नाखूनों से मेरे चेहरे को
गोदी में आ चुप हो जाए रोने से और अहसास दे आपको सबसे बड़ी जीत का।
निन्नु ले दैवीय सी अपने जीवन की पहली आपके सीने से सटकर...
आप अपनी बाहँ डाले रखो के कहीं
लुड़के ना इधर-उधर।
जब बैठे-बैठे थकन की नींद भरपूर आनंद दे...
सोये आपका बेटा आपकी गोदी में और
नसीहत मिले के बिगाड़ो मत।
और आप कहो के इत्ते से क्या होता है...
और लगो इतराने-बतियाने-बोलने-समझने।
इस से बड़ा क्या भला पागलपन
के जब पता हो के इसे नहीं पता भाषा का
और फिर भी सब कहे जाता हूँ-इसी यकीन से कि मेरा ही तो अंश है-इसी को तो सब पता है मेरा।
कितना भला लगता है नोजी से नोजी भिड़ाना...
और नटखटी बातें बनाना...
और मासूम छुअन जादू कर दे मन पर तो
बलैयाँ ले लेना चाँद की अपने।
कभी ठुड्डी ढूंडो तो कभी नाक मिलाओ
कभी ऒऒऒऒ
कभी उ उ उ उ उ
एक नयी वर्णमाला जिसका कोई सिमित व्याकरण नहीं।
किसे नहीं भायेगा भला अपना अंश।
अपने प्रेम के भीतर पला जो ।
किसे नहीं...
ये भी भला कोई कह सकने की बात है कि कैसा लगता है!
शब्दों से परे ही रहेगा ये अहसास।
कहा नहीं जाता-बताया नहीं जाता।

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