माँ किसान की बेटी है!

माँ तुम ठीक ही करती थीं
हम रहते थे छोटे से एक कस्बे में
और गर्मी की छुट्टियों में नाना के घर जाते थे।
गेहूँ कटती थी उस मौसम में जब
स्कूल की होती थी छुट्टी और
ख़ूब काम करते थे हम खेतों में।
मैं सो जाता था निढाल थककर
सुनहरे मोतियों के ढेर पर
मखमल से भी मीठी नींद आती थी।
वो अनाज जो गेहूँ की बालियों से
चुन लेते थे सब मामा मेरे
कल भी-आज भी देखा
जाते हुए-आते हुए दफ़्तर,
वो तिजोरियाँ भीग रहीं हैं
पानी बरस रहा है लबालब अनाज पर
और तेज़ बारिश सावन नहीं लग रही
मौसम सुहावना-रूमानी कुछ भी नहीं
लग रहा ये बुरा-सा और
याद आ रहा वो वहम माँ का
हम रहते थे छोटे से एक कस्बे में,
माँ दौड़ कर रख देती औंधे मुहँ काला तवा,
बरसना रुक जाएगा-गेहूँ नहीं बहेगी-किसान बच जाएगा-अनाज बन जायेगा!
माँ का ये सत्याग्रह कितना ज़रूरी है,
माँ किसान की बेटी है!

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