कुकुरमुतों के काफ़िले

सभी सभासदों के बीच ये बात है
आज फिर कीडे-मकोड़े आने हैं।
कभी हरियाली हुई काली और
अब गुलाबी को बेरंग करते
कुकुरमुतों के काफ़िले बढ़ रहे हैं।
उन्हें बताया गया है
के वे बढ़ रहे हैं जब सभासद जीत रहें हैं।
फिर भी नागरिक का सामूहिक शोषण है।
उदासीनता है- हताशा है प्रजातंत्र में।
भंग करने की लालसा है  जनता में। कि अब नहीं उम्मीद कोई बस गिरावट ही गिरावट है।
और देखो भला... असमंजस में फ़सीं भेड़ें गाड़ियों में ठूस ली गयी हैं।
वही गाड़ियां पहले हरी पगड़ियों से सनी
और अब गुलामी का गुलाबी पहन के सर पे
बढ़ी जा रही हैं।
आज तो ख़ाकी भी डंडा लिए जनता की सेवा में है। मजाल है कोई जाम लगे।
आज-कल तो अराजकता के महासम्मेलन होते हैं।

आओ शाम की वापसी की हुल्लड़बाज़ी का इंतज़ार करें।

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