राम
राम भला तुम हुए भी थे कभी
और अगर हुए तुम
तो किसके लिए थे
बुराई पर अच्छाई की जीत
या फिर मर्यादा के लिए।
तुम थे मित्रता सिद्धान्त के लिए
या के भगतवत्सल भाव
या फिर तुम थे एक सभ्य-आदर्श पुत्र-पिता
तुम भले भ्राता भी कहलाते हो
और एक जीवनसाथी भी।
अब वही उलझन है जग को
जो जानकी को परखने में थी तुम्हें
झगड़ा था कुछ-कुछ ज़िद्द-कुछ
समझ-नासमझ।
तब न्यायालय नहीं बैठे थे
बस स्वतः ही पटाक्षेप हो गया था।
तुम ही रह जाते तो कहीं भी रह लेते!
अब तुम्हारे रहने को लेकर बहस है
होने को लेकर असमंजस है।
ना ही करते यात्रा जनमानस के
मानस में तुम
तो ठीक रहता।
चारदीवारी में प्रतिबंधित होने के
दंश से तो बच जाते।
सोचता हूँ
राम!
अगर तुम नही आते
और अगर हुए तुम
तो किसके लिए थे
बुराई पर अच्छाई की जीत
या फिर मर्यादा के लिए।
तुम थे मित्रता सिद्धान्त के लिए
या के भगतवत्सल भाव
या फिर तुम थे एक सभ्य-आदर्श पुत्र-पिता
तुम भले भ्राता भी कहलाते हो
और एक जीवनसाथी भी।
अब वही उलझन है जग को
जो जानकी को परखने में थी तुम्हें
झगड़ा था कुछ-कुछ ज़िद्द-कुछ
समझ-नासमझ।
तब न्यायालय नहीं बैठे थे
बस स्वतः ही पटाक्षेप हो गया था।
तुम ही रह जाते तो कहीं भी रह लेते!
अब तुम्हारे रहने को लेकर बहस है
होने को लेकर असमंजस है।
ना ही करते यात्रा जनमानस के
मानस में तुम
तो ठीक रहता।
चारदीवारी में प्रतिबंधित होने के
दंश से तो बच जाते।
सोचता हूँ
राम!
अगर तुम नही आते
(कल के बाद घर जायेंगे अपने राम। रावणों की दुनिया में हैं, कुछ बातें यहीं कह ली जाएं।)
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