मितर प्यारे नूँ, हाल मुरिदाँ दा कहणा

इतना भी आसान नहीं नींद सो जाना चैन की। जो जानते हैं सुकून का रास्ता चलते रहते उसपर और जो नहीं जानते
भटकते रहते ता-उम्र!
जो दिख रहा हर ओर कि इंसान एक-दूसरे को ही काट रहा-छोड़ रहा और रख के सर पे पैर ऊँचा होने का दंभ भर रहा
कैसे बताऊं उसे जिसने बना भेजे हाड़-मास के ये खिलौने।

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