आजकल

सचमुच आसान नहीं होता बंद दरवाज़ों से आती
एक महीन सी रोशनी की लकीर के सहारे
रास्ता सोचना। और मान लेना कि यहीं से कहीं
जाता है इक और रास्ता जो इस दरवाज़े के उस ओर
किसी नई दुनिया में खुलता है।
शब्द् तो जो कहे जा चुके-कहे ही जा चुके हैं।
पर इतना भी क्या भरोसा कहे शब्दों पर कि
इंसान अपना कहा नकार न सके।
दूसरे का कहा सुधार न सके।
अनकही समझ न सके।
कही को सही से मान ले।

छोटे-बड़े होने से कुछ नहीं होता
मगर छोटा-बड़ा बोलने से तो बहुत कुछ होता है भाई।
कितनी बातें, बायें - दायें हो जाती हैं।
मेले में-रेले में कितनी बातें
इधर से उधर हो जाती हैं। पर जब
ये बिछड़ी-उलझी बातें बुरा नहीं मानती-
तो हम क्यों बुरा मान जाते हैं।
छोटे को बड़ा कहलवाने से कुछ नहीं होता
बड़े को बड़ा मानने से बड़प्पन आता है।
ख़ुशी आती है।
रिश्ते चल निकलते हैं। अच्छे से।

#रामायणtales #दुनियादारी #आजकल

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