सपनों वाली मिट्टी का ही बना हूँ मैं....
किस
मिट्टी के बने होते हैं सपने
ना
भीगते हैं ना हैं सुखते,
ना
रंग फ़ीका पड़ता है और ना
चड़ता
है कोई और रंग...
ना
दुखती हैं आँखें
देखते
रहो बेशक टकटकी लगाकर...
किरदारों
की अदला-बदली में भी
ढूढ़
लेते हैं हम अपनापन...
अनोखापन.
कितनी
मीठी होती है वो कोशिश
जब
फिर से बोना चाहते हैं सपनों में सपने...
झटक
कर खुल जाती हैं अगर आँखें
झपक
कर करते हैं बंद फिर से...
उसी स्वप्न में जीने के लिए...
उसी
पात्र से मिलने के लिए जिसे
मिलते
भी हैं रोज़..
पर
नहीं कर पाते सारी बातें...
मेरे
ही जैसा है जीवन सपनों का
या
सपनों
वाली मिट्टी का ही बना हूँ मैं....
ना
गलता हूँ
ना
सूखता
ना
याद आता हूँ ना भूलता...
🙌🙌🙌🙌
ReplyDelete