मन... उतावला है कई पहर से... बतियाने को....


एक पट वाले दो किवाड़...और उनके पीछे छिपी कितनी खिड़कियाँ...
ना जाने कौन सी खुलती है तुम्हारी तरफ़,
और कहाँ से जाता है रास्ता मेरी ओर....
मेरी अथाह कोशिशों में भी, कहूँ कैसे मैं...
खालीपन है इत्ता-सारा....
बहुत सारा...
भटक सा रहा है मन...
उतावला है कई पहर से...
बतियाने को....
एक झलक-एक स्पर्श तुम्हारा
एक शब्द-एक तसल्ली...॥
तुम्हारे बिना सब कुछ तो होता है...मगर
कुछ भी नहीं होता॥
कुछ भी नहीं है...
एक तुम्हारे होने से
मैं हूँ
मेरा अस्तित्व है
जीवन है मेरा....
सब दरवाज़े खुले हुए हैं....सब खिड़कियाँ दिख रहीं हैं..।
सबमें सब कुछ है...एक तुम्हारे होने से...
मैं हूँ....
मेरे शब्द-मेरे अक्षर
मेरे भाव-उनके सब उतार-चड़ाव,
सब मेरा है॥ हमारा है,,,
इस अनुभूति के लिए सिर्फ तुम्हारी अनुभूति का होना ज़रूरी है...और कुछ नहीं...
बस...
तुम्हारा होना....

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