मन की बात तो आज भी कहनी पड़ती है....
जीवन
की तुकबंदी...!!!
कैसे-कैसे
बन्द बनाती हैं जीवन की ये बारहखड़ी....
सब
तरह की व्याकरण....
तरह-तरह
की मात्राएं...
कभी
अर्ध-विराम और कभी पूर्ण...
बिन
बताये प्रश्नचिन्ह....
.............
फिर
भी खुशियों के लिए कोई symbol नहीं है
दो-तीन
चिन्हों को मिलाकर मुस्कुराहटें बना तो देते हैं...
फिर
भी कितना मुश्किल है
भावनाओं
को- अपनेपन को
मशीनी
लिखावट में पिरोना... ।
मन
की बात तो आज भी कहनी पड़ती है....
मन
से
मन
तक....
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