शब्द ठिठुरते हैं तुम बिन

शब्द ठिठुरते हैं तुम बिन
कांपती हैं उँगलियाँ
आँखों में बेचैनी रहती है
और मन उदास होता है....
इतना भी क्या ना होने का अभ्यास करवाना...
कैसा है ये तैयार करना मुझे आने वाली
कमी के लिए...
मेरे वर्तमान को कमी देकर... ।
तुम्हारा साथ तो मेरा अधिकार है...
जब तक है-
तब तक तो है ही।
तो बताओ...मुझे
हम अधूरे जीवन क्यूँ जीने लगते हैं...
साथ रहकर भी...ये मानकर कि अधूरे तो होना ही है भविष्य में।
शायद सफ़ल प्रयास-उस भविष्य को सच में अंकित कर देते हैं
हमारे जीवन-ग्लोब पर.....
कितनी भी परिक्रमा कर लें हम.....
फिर नहीं मिटती
अंधेरी पुर्णिमा जीवन से.... ।
भय में साथ रहकर भी साथ ना रहना...
दुखद है...
पर्याय अगर ना हो तो विपरीत खोजना अनुचित है...
साथ तो साथ होता है !!!
नहीं तो कुछ नहीं होता।
बस
शब्द ठिठुरते हैं तुम बिन
कांपती हैं उँगलियाँ
आँखों में बेचैनी रहती है
और मन उदास होता है....

Comments

  1. कल 11/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...