क्या अभी तक फैला रखा है तुमने आँचल अपना आसमाँ पर..
क्या
अभी तक फैला रखा है तुमने आँचल अपना
आसमाँ
पर....!?
क्या
अब भी हल्के-हल्के मुस्कुरा रहे हो तुम..!?
मेरे
शहर में...
हल्की
बूंदा-बाँदी है अभी. .
और
आसमाँ पे घना-सा एक आँचल है कोई..
तुम
हो क्या !
मेरे
आस-पास...
सावन
की इस आहट के साथ
तुम
तो नहीं आए हो ना ?
.....तुम्हें पसंद रहा है
किसी
वक़्त...
दबे
पाँव आना
और
हैरान करना मुझे....
आज
भी..हर बार की तरह पहचाने जा रहे हो तुम....
तुम्हारे
आँचल में चमकीले सितारे हैं..
कुछ
चाँद हैं...
जो
यकायक दमक उठते हैं,,,,
और
मैं
निहारने
लगता हूँ..
भीगने
लगता हूँ...
तुम्हारी
मुस्कुराहटों में.
समेट
लो ना आँचल...
पर
मुस्कुराते रहो...
बहुत
सुंदर लगते हो...
सच
में..
बहुत
!!!!
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