आज अमावस थी ना... कहाँ थे भला तुम...


क्या तुम पर किसी का कोई बंधन नहीं
तुम्हे कोई नहीं टोकता क्या
बड़ा होने से,
क्या कोई नहीं घबराता जब तुम छोटे होते जाते हो
ढूंढता नहीं है क्या कोई तुम्हें जब गुम होते हो दिन की रोशनी में
बादलों को टटोलता है कौन भला तुम्हारे लिए.
कोई कहता है क्या
के याद आती है तुम्हारी
कोई छूता है क्या तुम्हें अपनेपन से
कोई मुस्कुराता भी है क्या तुम्हें देखकर
नहीं ना. .
तभी तो शायद
तुम माह में एक बार
छुप के रोते हो सब से...
आज अमावस थी ना...
कहाँ थे भला तुम....

Comments

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...