तुम उदास ना हुआ करो...


तुम उदास ना हुआ करो...
रंग फीके पड़ जाते हैं
खारे हो जाते हैं बादल
और फूल धुंधले...
सब अटपटा सा लगता है बिना तुम्हारी मुस्कान के।
तुम उदास ना हुआ करो॥
दुनियादारी हल्की पड़ जाती है
खोजने का मन करता है वजह को
जिसने सताया है तुम्हें
और डांटने की इच्छा-सी होती है मेरी...
तुम उदास ना हुआ करो॥
तुम्हारा चुप रहना बहुत बोलता है...
और तुम्हारी मुस्कुराहट कितने कर्ज़ उतारती है मेरे।
मोतियों की माला पिरो के रखा करो...इन मोतियों की।
कोने में सजा रखीं हैं डोरियाँ मैंने, उनमें अपनी मुस्कुराहटें ऐसे की पिरोते रहना...
उदास ना होना...
सब अटपटा सा लगता है बिना तुम्हारी मुस्कान के।
तुम उदास ना हुआ करो॥

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