.दोस्तो के साथ... होली


तीन घर होते थे बचपन में...
एक के ऊपर एक....
फिर भी
छत सांझी होती थी सबकी,
वहाँ हम मिलकर...दोस्तो के साथ...
होली खेला करते थे...
आज देखा शहर के घर की छत से...
कितने दोस्त-मित्र हैं आस पास की छतों पर...
रंग सजाते हैं एक-दूसरे के चेहरों पे...
सचमुच....
भावनाएं ही तो बनाती हैं सांझी छतें------!!!! 

होली मुबारक!!! रंग मुबारक!!! न्द्रनुषी मुस्कुराहटें बनी रहें !!!! :-)

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