तुम्हारी परिभाषा कितनी विशाल है... कितनी सुंदर है...



तुम्हारी मुस्कुराहट महसूस होती है
लगती है मुझे अपनी सी...
पास से निकलते हो तुम तो
जादू घोल जाते हो साँसों में
तुम्हारा स्पर्श 
किसी गुलाब की बिल्कुल नई पंखुड़ी को 
छूने जैसा होता है....
और देखना तुम्हें ठंडक देता है थकी आँखों को...
तुम समझ जाते हो मेरे भावों का ज्वार---
और थपकी देकर सुला देते हो
मेरे बेचैन सपनों को।
तसल्ली देना कितना अच्छा होता है
और तुम्हारे साथ साथ चलना
और भी सुंदर।
तुम्हारा अस्तित्व मुझे प्रेरित करता है
और शब्द...
शब्द स्वर देते हैं मेरे संगीत को।
तुम्हारी परिभाषा कितनी विशाल है...
कितनी सुंदर है...
लिखूँ तो हर काव्यपुष्प तुम्हें अर्पित होता है...
बोलूँ तो...
तुम्हें ही निहारती हैं आँखें।
तुम मैं हो और मैं तुम!
तभी तो
कभी एक दूसरे से अलग जा नहीं पाते,
साथ रहते हैं॥

Comments

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...