For Eklavya- on EklavyaParv 07 August

शब्दों से परे कितना कुछ होता है
अहसास होता है
आभास रहता है
और फिर एक दिन
आपका बचपन
आपकी गोद में आ
आपको बाँध देता है।
आप उसी की मुस्कराहट में मुस्कुराते हो।
वही आपके सपनों को जीवंत करता है।
शब्दों में नहीं कही जाती कुछ खुशियाँ
हाँ
बस बाँट ली जाती हैं।
मैं जब छू रहा अपने आप को
अपनी बाहों में
और अचंभित हो रहा हूँ
जीवन कितने अच्छे से पिरोया है उसने
और नन्हे-नन्हे हाथों में समेट दिया है संसार मेरा।


शब्दों से परे है
पापा-मम्मा कहने वाले का आना।
हाँ, ख़ुशियों मेरी-हमारी मैं कह रहा हूँ।

स्वातिपर्व और हमारा एकलव्य आया है आज।

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