देखें हम सारे ... सर्दियों की धूप

हल्की
ख़ुश
पहली सी
प्यारी
अनोखी
मुझ सी
तुम सी
सब सी
बचपन भरी
एकदम खरी
ज़मीन पे आती
सबको भाती
दूर बहुत ही दूर की रहने वाली
मद्धम मद्धम कहने वाली
हर मौसम में आये जो
हर मौसम लजाये जो
कभी पकाती
कभी सुखाती
कभी जलाती
और कभी बुझाती
दिन को ये ही लाये हम तक
हाँ- सच में सब तक-हम तक
दहलीज पे आती
दिवार पे चढ़ती
आंगन में खेले
बन जाते रेले
नहीं आती तो ठिठुरन भी होती
आ जाती टीओ बैठक जमती
गाँव-देहात से शहरों तक
दिन-दिन और पहरों तक
जुड़ी हुई है सबसे ये तो
यहीं रही है कबसे ये तो

आओ चलो मिलते हैं इस से
साथ-साथ में बात-बात में

देखें हम सारे
आज...

सर्दियों की धूप

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