कथा भाव से मिले और भाव मिले कथा से।
कहो तो अगर
बढाऊं आगे मैं दहलीज़ लफ्जों की
कथा भाव से मिले और
भाव मिले कथा से।
और ये देखो ज़रा
तुम्हारे हामी भरते ही
किलकारियां लगी हैं खिलने
और खुशबुएँ गूँजने लगी हैं
मेरी-तुम्हारी-हमारी ओर।
और ये आभास कितना अद्भूत है मिलन का।
कभी सुनहरी-तो कभी सुर्ख़
कभी सुंदर तो कभी
सुंदर से भी सुंदर।
कितनी कल्पनाएँ कर लीं हैं हमने
और सांझी ख़ुशी दे दी है हर आरोहण को-कथा को।
सपने इतने सुंदर कभी ना थे
अहसास-आभास
तुममें मेरे होने का
मेरे लिए
जीवन से भी सुंदर है।
: मद्धम मद्धम आँखें खुलना
ख्व़ाब में भी तुम रहे
और ख्व़ाब के बढ़ने बाद भी
तुम ही सामने।
तुमसे आती सर्द-गर्म साँसे
और मुस्कुराहटें अनगिनत
मुझसे मिलती हैं जैसे
मैं कोई फूल अधखिला सा
और तुम सुनहरी सुबह की रोशनी बनकर
मुझे पूर्ण करते हो
जीवन अपना मैंने तो न सोचा था ख़ुद ही
कल्पना मैंने तो ना की थी अपने लिए
पर जिसने भी मेरा ये जीवन बुना है
कितना अच्छा है के
मेरे लिए साथी तुम्हें चुना है।
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