आज आख़िरी बार रतिया जाना है-औपचारिक रूप से तो... October 30,2013
मिगलानी टी स्टाल पे चलता लखबीर सिंह लख्खा का भजन...
काम होगा वही जिसे चाहोगे राम...अपने स्वामी को सेवक क्या समझाएगा..
उंघते से कुछ मेरे जैसे लोग कुछ तरो-ताज़ा. यात्री.. सब आ-जा रहें हैं।
सड़क के दूसरी ओर अख़बार असेम्बल हो रहे हैं। उनमें इश्तहार डल रहे हैं। और ये काम इतनी तेज़ गति से हो रहा है कि पारंगत हाथ-आँखें और दानवीर जिह्वा से आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।
लखबीर -झुला झूले रे बजरंगी हनुमान..-पर आ चुके हैं।
अखबार की कार्यशाला के पास ही सोया हुआ छोटा सा पुलिस थाना है और बगल में ही एक असहाय एटीएम।
मुझे किसी ऐसी गाड़ी का इम्तजार है जो अखबार ढोती हुई मेरे शहर से होकर जायेगी। फतेहाबाद से रतिया आप हर वक़्त नहीं जा सकते बस से।
बस के आने में अभी तो पैंतालिस मिनट हैं।
रतिया के लिए-मेरे लिए फतेहाबाद शहर हुआ करता...फिर हिसार इससे बड़ा लगा..कुरुक्षेत्र से पढ़ाई की तो
(एक अखबार वाली गाड़ी मिल गयी है-जिसमें पीछे के हिस्से में सीट हैं और ड्राईवर मिगलानी से चाय पीते ही चल पड़ेगा)
...कुरुक्षेत्र से मैं चलता फिरता संसाधन बना और कुछ दिन-महीनों फतेहाबाद मैं अपनी पहली नौकरी की।
और फिर एमिटी ने बुला लिया। कभी ये नहीं सोचा था-सपना भी नहीं पला था मन में कि महानगर में एक प्रसिद्ध और स्थापित संस्थान में
हरियाणा के सबसे बालक जिलों में से एक का ये लड़का वहां परमानेंट पहुँच जाएगा।
ख़ेर अब वहीँ हूँ अप्रैल 2009 से।
तब से अब तक अक्सर रात का हो सफ़र किया है होम-टाउन तक।
माँ-पापा से मिलने आते सात-आठ घंटे लग जाते...कभी रात को फतेहाबाद से रतिया किसी ट्रक में कभी किसी और वाहन को रुकवाया। एक बार तो स्कूल के एक दोस्त दीपक ने अपने आप ही गाड़ी रोक दी और जब मुझमें और एक अन्य जानकार में से चुनने की बात आई तो उसने साफ़ कह दिया की एक की जगह है और प्रवीण जाएगा, मेरा क्लासमेट है।
आज आख़िरी बार रतिया जाना है-औपचारिक रूप से तो- हमारी इच्छा और पापा की कोशिश से ट्रान्सफर हो गयी है तरावड़ी की। कुरुक्षेत्र के पास है।करनाल जिले में पड़ता है शायद।
छ: महीने साल भर का था कब पापा ढिंग (सिरसा) से रतिया आये थे। मुझे तो ढिंग से भी लगाव महसूस होता रहा है।
तो रतिया से जाना मुझे कैसा लगेगा...
कुछ लगेगा क्या!!?!!
अभी गाड़ी मुड़ गयी है रतिया की ओर...20 किलोमीटर है हैफेड कॉलोनी तक...और सड़क भी मरम्मत फेज़ में है... गाड़ी में फ़ोन पर टाइप नहीं होगा ठीक से...
आप अगर इतना पढ़ लिया है तो आप ही सोच लो मैं आगे क्या कहूँगा...
पर लिखूंगा तो ज़रूर अपने शहर पर...रतिया पर।
तहज़ीब जिसने सिखाई-दोस्त जिसने दिए... हिम्मत जहाँ मिली... बचपन जहाँ जिया....
उसकी याद तो बहुत आएगी।
काम होगा वही जिसे चाहोगे राम...अपने स्वामी को सेवक क्या समझाएगा..
उंघते से कुछ मेरे जैसे लोग कुछ तरो-ताज़ा. यात्री.. सब आ-जा रहें हैं।
सड़क के दूसरी ओर अख़बार असेम्बल हो रहे हैं। उनमें इश्तहार डल रहे हैं। और ये काम इतनी तेज़ गति से हो रहा है कि पारंगत हाथ-आँखें और दानवीर जिह्वा से आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।
लखबीर -झुला झूले रे बजरंगी हनुमान..-पर आ चुके हैं।
अखबार की कार्यशाला के पास ही सोया हुआ छोटा सा पुलिस थाना है और बगल में ही एक असहाय एटीएम।
मुझे किसी ऐसी गाड़ी का इम्तजार है जो अखबार ढोती हुई मेरे शहर से होकर जायेगी। फतेहाबाद से रतिया आप हर वक़्त नहीं जा सकते बस से।
बस के आने में अभी तो पैंतालिस मिनट हैं।
रतिया के लिए-मेरे लिए फतेहाबाद शहर हुआ करता...फिर हिसार इससे बड़ा लगा..कुरुक्षेत्र से पढ़ाई की तो
(एक अखबार वाली गाड़ी मिल गयी है-जिसमें पीछे के हिस्से में सीट हैं और ड्राईवर मिगलानी से चाय पीते ही चल पड़ेगा)
...कुरुक्षेत्र से मैं चलता फिरता संसाधन बना और कुछ दिन-महीनों फतेहाबाद मैं अपनी पहली नौकरी की।
और फिर एमिटी ने बुला लिया। कभी ये नहीं सोचा था-सपना भी नहीं पला था मन में कि महानगर में एक प्रसिद्ध और स्थापित संस्थान में
हरियाणा के सबसे बालक जिलों में से एक का ये लड़का वहां परमानेंट पहुँच जाएगा।
ख़ेर अब वहीँ हूँ अप्रैल 2009 से।
तब से अब तक अक्सर रात का हो सफ़र किया है होम-टाउन तक।
माँ-पापा से मिलने आते सात-आठ घंटे लग जाते...कभी रात को फतेहाबाद से रतिया किसी ट्रक में कभी किसी और वाहन को रुकवाया। एक बार तो स्कूल के एक दोस्त दीपक ने अपने आप ही गाड़ी रोक दी और जब मुझमें और एक अन्य जानकार में से चुनने की बात आई तो उसने साफ़ कह दिया की एक की जगह है और प्रवीण जाएगा, मेरा क्लासमेट है।
आज आख़िरी बार रतिया जाना है-औपचारिक रूप से तो- हमारी इच्छा और पापा की कोशिश से ट्रान्सफर हो गयी है तरावड़ी की। कुरुक्षेत्र के पास है।करनाल जिले में पड़ता है शायद।
छ: महीने साल भर का था कब पापा ढिंग (सिरसा) से रतिया आये थे। मुझे तो ढिंग से भी लगाव महसूस होता रहा है।
तो रतिया से जाना मुझे कैसा लगेगा...
कुछ लगेगा क्या!!?!!
अभी गाड़ी मुड़ गयी है रतिया की ओर...20 किलोमीटर है हैफेड कॉलोनी तक...और सड़क भी मरम्मत फेज़ में है... गाड़ी में फ़ोन पर टाइप नहीं होगा ठीक से...
आप अगर इतना पढ़ लिया है तो आप ही सोच लो मैं आगे क्या कहूँगा...
पर लिखूंगा तो ज़रूर अपने शहर पर...रतिया पर।
तहज़ीब जिसने सिखाई-दोस्त जिसने दिए... हिम्मत जहाँ मिली... बचपन जहाँ जिया....
उसकी याद तो बहुत आएगी।
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