मन उज्ज्वल तो जग

मन उज्ज्वल तो
जग
जग उज्ज्वल तो हर ओर
जग-मग
जग-मग होती है।
रस्ते-रस्ते खुशियाँ आती
आती हैं लड़ियाँ खिलती
खुलती हैं पेटियाँ-बक्से
बंटते हैं खेल-खिलौने
मीठा-शीठा भी तो आता
बम्ब-पटाखे कोई लाता।
कोई कोई क्या सब कोई ये
और सारे त्यौहार मनाता।

दिन किसी के आने का वापस अपने घर-अयोध्या में और
दीप जले घर-घर देखो
जग-जग मग-मग करते हैं।
बात यही है समझ में आती
घर लौट के आना
अपनों के संग
ही दिवाली है होती ।
आओ चलो मिलते हैं सबसे
मेरे तेरे सबके अपने...
अपने भी वही हैं होते सुख-दुःख के साथी हैं जो सब।
आओ मिलो...
दीप जलाओ-ख़ुशी मनाओ।

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