हम निभा लें धरती ही...

जहां चाँदनी मुस्कुराती हो
समय से आती हो-साथ रहती हो।
ठंडक स्वभाव में होनी ही चाहिये।
और क्या जवाब दें भला...
ग्रहों-ग्रहों भटकने वाले हम
निभा लें धरती ही
तो बहुत होगा।
मौकापरस्ती की कौम है बनी सारी
थोड़ा इसी गिरावट को सम्भालें
तो बहुत होगा।

Comments

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

Second Post: कुछ अनकही सी.. जो कह दी है... फिर भी अनकही...