रिश्तों की बनावट

रिश्तों की

बनावट

लिखावट

और बुनावट....

समझने में बीत जाती हैं

कितनी घड़ियाँ

कितने पहर

कितने पल

और रास्ते बादल-बादल के यूँ...

आना-जाना लगा रहता है।

पहेलियों की इस बारहखड़ी में

नाजाने कहाँ से अक्सर आ जाते हैं...

कहाँ से मतलब..... और मैं....

उलझ जाता हूँ

उलझा रहता हूँ


कब तक
सब तक

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