सुबह-सुबह तो दिन था....

रित रहा है धीरे-धीरे आसमां
खाली हो रहें हैं देखो तारे...

छिपती फिर रही है कहीं हवा और
देखो आज तो अंधेरा भी सहमा-सहमा सा है!

ये भला कौन सा दिन है-किसके नाम की घड़ी है ये...
कौन सा पहर है...

सुबह-सुबह तो दिन था.... दोपहर थी- शाम भी हुई... अब रात है....
और सुनो.....

आगे सहर है !

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