एक रूमानी सपना
तुम्हारे संग...
तुम्हारे बिना
जब भी देखा है
रंग भरे हैं तुमने...
सपनों में आकर
और भरते गये हो।
कितने इंद्रधनुष हैं अब रात में मेरी!!!!
सारा घना आसमां जैसे अटा पड़ा है...............
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अधूरी कविता.....
मैं जब बात करूं कोने की तो बात अपनी सी लगती है दो दीवारें मिलती हैं दो किरदार भागे जाते हैं कोने की ओर कुछ अपनी बातें भी तो कोने में ही हो पाती हैं. कोने में रहना संतुष्टि देता है सबल करता है प्रबल बनता है और शायद प्रवीण भी! कोने का केबिन कोई खोज नहीं है यह सब पाया हुआ है संजोया हुआ है बांटने आया हूँ बस! दफ़्तर में केबिन कोने में ही है.... अपनापन अपनेपन से हो ही जाता है!
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