आ जाना के तुम भी, इस बार की बारिश में घर में कुछ तो नया होगा दिखाने को॥
नयी बारिश
में भी याद करता है मौसम पुराने को॥
कुछ तो नया कहदे - नयी महफ़िल में सुनाने को॥
आहट सावन की तुमसे कितनी मिलती-जुलती है
तुम्हारी तरह, बड़ा अज़ीज़ है, ये भी ज़माने को॥
हर मौसम की दावत में ये ज़रूर शरीक होता है
अजब रंग रखता है आसमां, हमें लुभाने को॥
आ जाना के तुम भी, इस बार की बारिश में
घर में कुछ तो नया होगा दिखाने को॥
‘शिख़र’ हमने तो ख़ुद को कुछ भी कहना कम किया,
क्या जल्दी है भला, उम्र पड़ी है सारी कमाने को॥
कुछ तो नया कहदे - नयी महफ़िल में सुनाने को॥
आहट सावन की तुमसे कितनी मिलती-जुलती है
तुम्हारी तरह, बड़ा अज़ीज़ है, ये भी ज़माने को॥
हर मौसम की दावत में ये ज़रूर शरीक होता है
अजब रंग रखता है आसमां, हमें लुभाने को॥
आ जाना के तुम भी, इस बार की बारिश में
घर में कुछ तो नया होगा दिखाने को॥
‘शिख़र’ हमने तो ख़ुद को कुछ भी कहना कम किया,
क्या जल्दी है भला, उम्र पड़ी है सारी कमाने को॥
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