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Showing posts from July, 2012

सुबह-सुबह तो दिन था....

रित रहा है धीरे-धीरे आसमां खाली हो रहें हैं देखो तारे... छिपती फिर रही है कहीं हवा और देखो आज तो अंधेरा भी सहमा-सहमा सा है! ये भला कौन सा दिन है-किसके नाम की घड़ी है ये... कौन सा पहर है... सुबह-सुबह तो दिन था.... दोपहर थी- शाम भी हुई... अब रात है.... और सुनो..... आगे सहर है !
एक रूमानी सपना तुम्हारे संग... तुम्हारे बिना जब भी देखा है रंग भरे हैं तुमने... सपनों में आकर और भरते गये हो। कितने इंद्रधनुष हैं अब रात में मेरी!!!! सारा घना आसमां जैसे अटा पड़ा है............... .............................. अधूरी कविता.....

मुस्कुरा दो...

मुस्कुरा दो... के बदली नहीं है आसमां में कोई... अब जादूगर हो तो जादू करते रहा करो।

सब गीली मिट्टी से ही रचता है

खुशियाँ काफ़ूर होती देखीं हैं बनते देखा है सपनों को..... ईंट हो या स्वप्न भाव हो या अपनापन सब गीली मिट्टी से ही रचता है। और बरसात इसीलिए होती है शायद!

रिश्तों की बनावट

रिश्तों की बनावट लिखावट और बुनावट.... समझने में बीत जाती हैं कितनी घड़ियाँ कितने पहर कितने पल और रास्ते बादल-बादल के यूँ... आना-जाना लगा रहता है। पहेलियों की इस बारहखड़ी में नाजाने कहाँ से अक्सर आ जाते हैं... कहाँ से मतलब..... और मैं.... उलझ जाता हूँ उलझा रहता हूँ कब तक सब तक

आओ कुछ और बात करें

साथी! आओ कुछ और बात करें... रिते हुए इस आँगन को फिर से भरें।   सजा लें रंगों की भीनी - भीनी ख़ुशबू.... मुस्कान में आज कुछ ख़ास रंग भरें।

आ जाना के तुम भी, इस बार की बारिश में घर में कुछ तो नया होगा दिखाने को॥

नयी बारिश में भी याद करता है मौसम पुराने को॥ कुछ तो नया कहदे - नयी महफ़िल में सुनाने को॥   आहट सावन की तुमसे कितनी मिलती-जुलती है तुम्हारी तरह , बड़ा अज़ीज़ है , ये भी ज़माने को॥ हर मौसम की दावत में ये ज़रूर शरीक होता है अजब रंग रखता है आसमां , हमें लुभाने को॥ आ जाना के तुम भी , इस बार की बारिश में घर में कुछ तो नया होगा दिखाने को॥ ‘ शिख़र ’ हमने तो ख़ुद को कुछ भी कहना कम किया , क्या जल्दी है भला , उम्र पड़ी है सारी कमाने को॥