कितने भी रंग सजा लूँ...


तुम्हारे ना होने की भरपाई कहाँ कर सकता है कुछ...
कितने भी रंग सजा लूँ...
एक तुम्हारे रंग बिना ये पूरा
इंद्रधनुष धूमिल सा लगता है...
फीका लगता तो मैं रंग और भर देता!!!
तर्क-वितर्क, प्रश्न-उत्तर, सब विवश हैं...
बिन बताये चुप हुए हो-
देखो मौसम से शिकायत है मुझे
रूठा हूँ मैं हवाओं से
और अपनी कविताओं से
तुम्हें कुछ बुरा लगा होगा...
या बहुत अच्छा नहीं लगा होगा कुछ मेरा कहा...
वही रंग बता दो मुझे-
मैं निकाल दूँ उसे अपने बीच से
और पा लूँ वही इंद्रधनुष साथ का॥
जिसमें भरोसा तो है-
समझ तो है
साथ तो है!!!

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