जानते हो हमारा रिश्ता क्या है...


जानते हो हमारा रिश्ता क्या है...
मैंने रास्ते देखें हैं
साथ चलते हुए... दो-दो सड़कें एक साथ॥
दो परिंदे एक ही आसमान में उड़ते देखें हैं मैंने॥
पगली बातें करती चार आँखें
और एक दूसरे को थामती हथेलियाँ....
तुम्हें देखना ख़ुद को देखने जैसा ही होता है...
जानते हो हमारा रिश्ता क्या है...
क्यूँ भला होते हैं  एक साथ हम
जब हम सोचते हैं...
एक जैसी भाषा- और सांझे शब्द...
अपनी नींद भी सांझी-
और सपने भी एक ही साथ बुने हुए...
मुस्कुराहट दोनों की
और दिन हमारा।
जादूगर उँगलियाँ और बचपन की सारी अठखेलियाँ
सब लौटा लाते हो तुम...
जानते हो हमारा रिश्ता क्या है...?!!!
कुछ है भी या सिर्फ़ हम हैं॥
रिश्ता तो दो में होता है...
हम तो एक हैं ना....


Comments

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...