दो गाँठे मत लगाना.... खोल नहीं पाऊँगा


अभी कुछ नहीं कहूँगा तुमसे...
अभी तो बात कुछ और करनी है
पूछना है कुछ
एक सवाल करना है तुमसे.
जानता हूँ के तुम्हें...
जवाब देना ,, वो भी बोलकर...
पसंद नहीं है...
पर क्या करूँसमझ नहीं आया है कुछ
तुम न कहते थे के जब भी रूठे कोई
तो मनाने के लिए
प्यार दोहरा दो अपने लफ्जों में !
मैंने कई बार किया है ये...
मनाया है तुम्हें…. कितनी बार.....
अब मगर ...
क्यूँ मेरी ये सीढ़ियाँ कहीं नहीं जा पाती...!
नाराज़ होकर तुमने लौटाया था मेरे लफ़्ज़ों को।
क्यूँ भला, लगा देते हो... दो-दो गाँठे तुम......
मैं खोल भी नहीं पाता हूँ
जान नहीं पाता हूँ
क्या कहा है तुमने....?
एक अनुरोध है...
हमारे रिश्ते में... संभावनाएं हैं..... सपने हैं.....
दो गाँठे मत लगाना  मैं खोल नहीं पाऊँगा....
सच....अनुरोध है...
नाराज़ बेशक होना...पर मुँह ना फेरना कभी.....!!!

Comments

  1. दो गाँठे मत लगाना.... खोल नहीं पाऊँगा......tu saccha pyaar to kar samunder bhi paar kar jaunga .....

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