ek puraani baaat........ kisi ne kya khoob kahi,,,,,,,,,,,,,

आसान नहीं है मेरे लिए
रिश्तों की मरम्मत करना
जानता नहीं हूँ ना
,
कौन सा सिरा
कहाँ जोड़ना है
,
इन रंग बिरंगी डोरियों में
ज़बान भी तो नहीं है
,
टूटते हुए शोर भी तो होता है,
इसी लिए तो
छुपकर करना पड़ता है
छुपकर कहना पड़ता है,
छुपकर
चुप रहकर
और अगर कहीं,
आवाज़ हो जाए तो
टूट जाती हैं डोरियाँ.
सबके जीवन मे होती हैं शायद
ये डोरियाँ,
टूटती भी हैं शायद
मगर सब जोड़ नहीं पाते होंगे...


मरम्मत सबके बस की बात नहीं होती!

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