Second Post: कुछ अनकही सी.. जो कह दी है... फिर भी अनकही...

तुम्हे शायद ही याद हो
शायद इसलिए
क्यूँ कि
इन बीते बरसों ने
मेरी यादों की ज़मीन पर
एक गर्द सी जमा दी है
हो सकता है कि
तुम्हारे वहाँ भी
हवा का तेज़ झोंका
ना आया हो!
मैं याद दिलाना चाहता हूँ
हमारी वो
छोटी सी बहस
जब तुम लाई थी मेरे भेजे ख़त
एक सफेद लिफाफे में बाँधकर
मेरे लफ्ज़
मेरी ही आवाज़ में सुनने के लिए
हल्की सी गाँठ लगी दिखी थी मुझे
तुम कस कर पकड़ें थी
मैने तुम्हारे हाथों से छीनना चाहा था
बस यू ही!
जब हम दोनों ने
एक  दूसरे के खिलाफ  ज़ोर लगाया तो
वो गाँठ और सख़्त हो गयी थी.
फिर क्या था
तुम नाराज़ हो गयीं थी
तुम्हारे लाख कहने पर भी
मैं वो गाँठ ना खोल पाया था
ना बता पाया था उसकी वजह
तुम तो आज भी नाराज़ हो
क्या आज भी ये समझ नहीं आया
मुझे
बंधन बाँधना आता है
बंधन खोलना
ना पहले आता था
और
ना ही इन
बीते
बरसों में
सीख पाया हूँ..........

Comments

  1. A beautiful Creation. the one i will remember because it has been created by a person who stood by me at my difficult times. the one who has supported me when it matter for me the most.

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