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Showing posts from October, 2018

संकोच कहाँ करता है

मनुष्य-कहने में कितना सजग सा शब्द है जीता है और जीतता है हारता है भी- भागता भी है। एक तरफ़ हो जाता है जब नहीं अच्छा लगता दूसरी तरफ़। और जब असमंजस हो इधर-उधर तो अपने आप को लेकर साथ स्थापना होती है आत्म-सम्मान की। जीवन चलाना है-चलना भी है। क्यूँ भला आसक्त हों-क्यूँ कभी परि-भक्त हों। अपनत्व अपने से ही हो तो कितना अच्छा लगता है। स्वयं को आये समझ जो वही स्थापित सत्य है।और जो है असत्य वह तो हवा में उगता है। क्यूँ हों आसक्त... किसी दुविधा नहीं- अपितु सुविधा का नाम है जीवन। तभी तो लगता है के दुपहिया है जीवन और त्रिकोण भी।

अभी तो राम रास्ते में हैं!

अभी तो राम रास्ते में हैं! आयें तो कहना... मैं आया था पूछने-बताने तो नहीं कहने-चेताने तो नहीं नहीं रोकने को- ना टोकने को... मैं आया था बांटने को बातें नाते-रिश्ते-सौगातें... मुझे बताया के रास्ते में हो! मैं पूछ बैठा देहरी से.. रास्ता कहाँ जा रहा है राम का... देहरी कुछ अरसे से चुप ही रही और मैं इंतज़ार करके चला गया! #दिवाली का महत्व या प्रासंगिकता नहीं.. अस्तित्व समझने का मन है!

राम

राम भला तुम हुए भी थे कभी और अगर हुए तुम तो किसके लिए थे बुराई पर अच्छाई की जीत या फिर मर्यादा के लिए। तुम थे मित्रता सिद्धान्त के लिए या के भगतवत्सल भाव या फिर तुम थे एक सभ्य-आदर्श पुत्र-पिता तुम भले भ्राता भी कहलाते हो और एक जीवनसाथी भी। अब वही उलझन है जग को जो जानकी को परखने में थी तुम्हें झगड़ा था कुछ-कुछ ज़िद्द-कुछ समझ-नासमझ। तब न्यायालय नहीं बैठे थे बस स्वतः ही पटाक्षेप हो गया था। तुम ही रह जाते तो कहीं भी रह लेते! अब तुम्हारे रहने को लेकर बहस है होने को लेकर असमंजस है। ना ही करते यात्रा जनमानस के मानस में तुम तो ठीक रहता। चारदीवारी में प्रतिबंधित होने के दंश से तो बच जाते। सोचता हूँ राम! अगर तुम नही आते (कल के बाद घर जायेंगे अपने राम। रावणों की दुनिया में हैं, कुछ बातें यहीं कह ली जाएं।)

आजकल

सचमुच आसान नहीं होता बंद दरवाज़ों से आती एक महीन सी रोशनी की लकीर के सहारे रास्ता सोचना। और मान लेना कि यहीं से कहीं जाता है इक और रास्ता जो इस दरवाज़े के उस ओर किसी नई दुनिया में खुलता है। शब्द् तो जो कहे जा चुके-कहे ही जा चुके हैं। पर इतना भी क्या भरोसा कहे शब्दों पर कि इंसान अपना कहा नकार न सके। दूसरे का कहा सुधार न सके। अनकही समझ न सके। कही को सही से मान ले। छोटे-बड़े होने से कुछ नहीं होता मगर छोटा-बड़ा बोलने से तो बहुत कुछ होता है भाई। कितनी बातें, बायें - दायें हो जाती हैं। मेले में-रेले में कितनी बातें इधर से उधर हो जाती हैं। पर जब ये बिछड़ी-उलझी बातें बुरा नहीं मानती- तो हम क्यों बुरा मान जाते हैं। छोटे को बड़ा कहलवाने से कुछ नहीं होता बड़े को बड़ा मानने से बड़प्पन आता है। ख़ुशी आती है। रिश्ते चल निकलते हैं। अच्छे से। #रामायणtales #दुनियादारी #आजकल