ये साल जिसमें तुम मिले...

आओ हाथ थाम कर
देखते हुए सपन सांझे
आगे चलते हैं।
उस तरफ जिस तरफ़
से आती हैं खुशबुएँ मीठी
और सब अपनी बातें
सुनाई देती हैं जहां
वहीँ जहां तुम रहते रहे-
वहीँ जहां मैं मिल गया तुमसे
वहीँ जहां सब रंग मिलकर एक
रंग के हो जाते हैं।
वहीँ जहां अनहद का विस्तार है
कथा और भाव हैं।
बीते साल ने इस साल को और इस कैलेंडर ने एक और नए कैलेंडर को दे दी है आवाज़।
और देखना तुम...
जैसे इस बारहखड़ी में तुम और मैं एक शब्द बने
आने वाले दिनों में यही साथ बढ़ेगा।

ये साल
जिसमें तुम मिले
पहचान मिली
इस साल की बरकत
बनी रहे कल और
उसके साथ आने वाले
हर कल में।

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