मैं रहूँ सहज-और रहूँ बस
मैं
मुझको जाणु और मैं ही
पहचाणु
मुझको।
मैं
बरसों-बरस खुल-खुल के
बंधा
जाता।
मैं
बिना पूछे-कहे निभाता जाता।
यूँ
ही चला चल राही
कितनी
हसीन है ये दुनिया।
रास्ते-
वास्ते बदले
काहे
को तू मन छोड़े
काहे
को अपनी बोली बदले तू
अपनी
भाषा ही अपनी है रहती
परि-भाषा
तो पराई ही है होती।
मैं
रहूँ सहज-और रहूँ बस
....
बस
रह जाऊँ-ख़ुद से निभा जाऊँ।
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