तुमसे ज़्यादा कौन रूमानी है-कौन प्यारा है- कौन अपना है!
“कुछ रूमानी लिखो ना!
मौसम भी अच्छा
सा है...
या कहूँ के तुम
सा है। ”
ये बात कही है
उसने मुझे और मैं लिखने बैठा हूँ...
कुछ रूमानी
कुछ प्यारा
कुछ रंगीन
कुछ ऐसा जिसमें
बात भी हो और
साथ भी...
जो पास भी हो और
ख़ास भी।
जिसमें जादू भी
हो और हो जादूगर भी...
जिसमें बचपन हो
और उम्र भी॥
भला लिखना कैसे
आ जाता है
जब तुम्हारा
हुकुम होता है...या कहूँ के तुम
ऐसे ही कह देते
हो कि सुनाओ ना कुछ अपना सा-
और मैं लिखने
बैठ जाता हूँ!
कुछ रूमानी
कुछ प्यारा सा
कुछ अपना सा
रंगीन
……………..अरे सुनो……….
मुझे सुनने वाले
मेरे साथी
तुम्हारा नाम तो
कहो ज़रा
वही लिख कर कागज़
भेज दूँ तुम्हारे पास...
भला-
तुमसे ज़्यादा कौन
रूमानी है-कौन प्यारा है- कौन अपना है!
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