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Showing posts from September, 2011

तुम ठहर गये थे............

तुम ठहर गये थे... आज पहली बार! मेरे लिये! मुझे हैरानी हुई थी! इतनी कि मुझे शब्द कम पड़ गये थे. शब्द जो मेरे पास बहुतायत में हुआ करते थे. शब्द जो मैं जब चाहे उडेल देता था. शब्द जो मेरे अपने हुआ करते थे...! अहसास कुछ खो जाने का तब होता है जब हम उसे खोजते हैं और पाते नहीं! आज जब लंबे पलों बाद तुम वापस लौटे... मेरे लिए रुके... तो मुझे सचमुच हैरानी हुई थी.... ..........उसी ने मेरे शब्द कम कर दिए थे........... ............................................................................

छोटा आदमी...

चाँद मे जाकर उसने जो टांक दिया एक छोटा सा बटन अपनी कमीज़ का टूटा हुआ वो छोटा आदमी भी बड़ा हो गया! जिसका सब दिखता हो ग़रीब होता है परदादारी तो अमीरों की सिफ्त है ना!? उसका बटन जो उसने टांका था छुपा रहा था चाँद का दाग़... और इसी को देखकर उसे अपने ग़रीब ना होने का वह्म हो रहा था........ 19 मार्च 2008

ek puraani baaat........ kisi ne kya khoob kahi,,,,,,,,,,,,,

आसान नहीं है मेरे लिए रिश्तों की मरम्मत करना जानता नहीं हूँ ना , कौन सा सिरा कहाँ जोड़ना है , इन रंग बिरंगी डोरियों में ज़बान भी तो नहीं है , टूटते हुए शोर भी तो होता है, इसी लिए तो छुपकर करना पड़ता है छुपकर कहना पड़ता है, छुपकर चुप रहकर और अगर कहीं, आवाज़ हो जाए तो टूट जाती हैं डोरियाँ. सबके जीवन मे होती हैं शायद ये डोरियाँ, टूटती भी हैं शायद मगर सब जोड़ नहीं पाते होंगे... मरम्मत सबके बस की बात नहीं होती!

मेरी आँखों की कलाएँ ना देख पाये तुम...

चाँद की कई कलाएँ होती हैं... एक ज़बान होती है आँखों की ! मैने जब सोचा कि दिल की बात उडेल कर ये गठरी उतार दूं... कुछ ही शब्द थोड़े से शब्द अपने शब्द मैनें ढूँढ ही लिए! मगर मेरे लफ़्ज़ों का साथ नहीं दिया होठों ने. रास्ता देने वाला ही जब दरवाज़ा बंद कर ले, जब चाँद और आँखों को अलग कर दिया जाए... कुछ तो फ़र्क पड़ता होगा ! ? .... .... चाँद की ज़ुबान तो तूने समझी दोस्त मेरी आँखों की कलाएँ ना देख पाये तुम ..........मैं तबसे खाली ज़मीन पर अकेला हूँ..... 28 जून 2007