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Showing posts from July, 2011

खुद को चाहना कितना सकुन भरा होता है ना.. कोने का केबिन....

एक सीरे से दूसरे सीरे तक हर तरफ देख कर सोच चुका हूँ मन की बात हालात खुशी ख़ामोशी सब तुम्हे कहने का मन होता है... तुम्हे ही छूकर अपने होने की तसल्ली होती है मुझे... मेरे अंधेरे कमरे में तुम बंद दरवाज़ों से आने वाली उस रोशनी की  तरह हो प्रिये जिसके सहारे मैं ढूँढ सकता हूँ दर-ओ-दीवार अपने. तुम हो क्या क्या-क्या मेरे लिए पता नहीं.. बस इतना पता है कि... मन की बात हालात ख़ुशी ख़ामोशी सब तुम्हे कहने का मन होता है... बस तुम्हे कहने का...

कुछ सहेजे हुए साथी आपसे बात करने के लिए कोने के केबिन को सौंप रहा हूँ...

कुछ नमी सी थी मेरी मिट्टी में जब मैने देखा कि मैं धंसता जा रहा हूँ मैने एक पिटारा खोला उसमे से कुछ चुनिंदा पल चुनकर निकाले और उस नमी को सावन की रिमझिम बना डाला फिर निकल पड़ा भीगने नाचने मेरे अपने चाँद को नमी का तिलक लगाने... वो तुम्हारी यादों का पिटारा था...!

Second Post: कुछ अनकही सी.. जो कह दी है... फिर भी अनकही...

तुम्हे शायद ही याद हो शायद इसलिए क्यूँ कि इन बीते बरसों ने मेरी यादों की ज़मीन पर एक गर्द सी जमा दी है हो सकता है कि तुम्हारे वहाँ भी हवा का तेज़ झोंका ना आया हो! मैं याद दिलाना चाहता हूँ हमारी वो छोटी सी बहस जब तुम लाई थी मेरे भेजे ख़त एक सफेद लिफाफे में बाँधकर मेरे लफ्ज़ मेरी ही आवाज़ में सुनने के लिए हल्की सी गाँठ लगी दिखी थी मुझे तुम कस कर पकड़ें थी मैने तुम्हारे हाथों से छीनना चाहा था बस यू ही! जब हम दोनों ने एक  दूसरे के खिलाफ  ज़ोर लगाया तो वो गाँठ और सख़्त हो गयी थी. फिर क्या था तुम नाराज़ हो गयीं थी तुम्हारे लाख कहने पर भी मैं वो गाँठ ना खोल पाया था ना बता पाया था उसकी वजह तुम तो आज भी नाराज़ हो क्या आज भी ये समझ नहीं आया मुझे बंधन बाँधना आता है बंधन खोलना ना पहले आता था और ना ही इन बीते बरसों में सीख पाया हूँ..........

"Koney ka Cabin aur Main"

Talking about 'cornership' is like saying something that belongs to all here and there. The moment I add even a single word to the existence of this Feeling , I encounter a process of punctuation going on inside the walls of mind. How we express our feelings with words and the way we surface them! We are really superhuman as we always figure out what we feel and then deny it straight away. That's why a Face is to be seen not from exact front.. but from a side.. and that brings you to the 'Kona'... where you are not under scrutiny or a questioning gaze...