घर तो घर होता है... घर में माँ होती है
घर तो घर होता है
घर में माँ होती है
पापा होते हैं।
घर में दिवार-छत के अलावा
भी
बहुत कुछ होता है
घर में बाम होता है
माँ से ही लगवाने को
झूठा-मूठा जुकाम होता है।
घर में धुप होती है
छावं होती है
चाव भी होता है।
घर में ठहाके होते हैं
घर में घड़ी की टिक-टिक भी है।
आस-पड़ोस घर के आस-पास ही होता है,
दीवारें सांझी बनती हैं
मुंडेरें-गलियारे साथ-साथ सट जाते हैं।
घर से ही तो
काम पे जाया जाता है।
घर ही तो लौट के आया जाता है।
घर कब गरीब होता है भला
सब कुछ कितना करीब होता है भला।
अपनापन होता है जी घर में
घर में फुसफुसाहट होती है
एक को दुखता है तो सबको
कराहट होती है।
घर में बाज़ारी कुछ नहीं होता
सब सुंदर होता है
मन पे भारी कुछ नहीं होता घर में।
घर में चप्पलें बंट जाती हैं
चद्दर-कम्बल उलझ जाती हैं।
घर में कितना कुछ
छोटा-छोटा होता है।
और
घर कितना
कितना बड़ा होता है।
घर में माँ होती है
पापा होते हैं।
घर में दिवार-छत के अलावा
भी
बहुत कुछ होता है
घर में बाम होता है
माँ से ही लगवाने को
झूठा-मूठा जुकाम होता है।
घर में धुप होती है
छावं होती है
चाव भी होता है।
घर में ठहाके होते हैं
घर में घड़ी की टिक-टिक भी है।
आस-पड़ोस घर के आस-पास ही होता है,
दीवारें सांझी बनती हैं
मुंडेरें-गलियारे साथ-साथ सट जाते हैं।
घर से ही तो
काम पे जाया जाता है।
घर ही तो लौट के आया जाता है।
घर कब गरीब होता है भला
सब कुछ कितना करीब होता है भला।
अपनापन होता है जी घर में
घर में फुसफुसाहट होती है
एक को दुखता है तो सबको
कराहट होती है।
घर में बाज़ारी कुछ नहीं होता
सब सुंदर होता है
मन पे भारी कुछ नहीं होता घर में।
घर में चप्पलें बंट जाती हैं
चद्दर-कम्बल उलझ जाती हैं।
घर में कितना कुछ
छोटा-छोटा होता है।
और
घर कितना
कितना बड़ा होता है।
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